साक्षात हुआ श्रवण कुमार के अंधे माता पिता का श्राप
काल ने हर लिए पुत्र वियोग में विलाप करते श्रापित रघुवंशी राजा दशरथ के प्राण
राजा दशरथ महाप्रयाण की लीला का मंचन देख अश्रुपूर्ण भाव में मुग्द हुए रामभक्त श्रोतागण
शाहगंज/ जौनपुर
नगर की ऐतिहासिक मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की लीला का बृहद मंचन दूर दराज के क्षेत्रों तक मशहूर है। रामलीला समिति के तत्वाधान में मंचन के चौथे दिन शनिवार की शाम गांधीनगर कलेकतरगंज स्थित श्रीराम लीला मंच पर अयोध्या के कलाकारों द्वारा लीला खेली गई। प्रस्तुत लीलान्स में आर्य सुमंत का अयोध्या आगमन, पुत्र वियोग में दशरथ विलाप और श्राप ग्रहित दशरथ महाप्रयाण की लीला का मंचन संपन्न हुआ। भावपूर्ण मंचन देख भारी संख्या में उपस्थित रामभक्तों ने लीला का आनंद उठाया।
शनिवार की देर शाम मंच पर समिति के रामभक्त कार्यकर्ताओ द्वारा मर्यादा पुरुषोत्तम की आरती की गई। जिसके बाद अयोध्या धाम से आए बजरंग विजय आदर्श रामलीला मंडली के कलाकारों द्वारा लीला खेली गई। रामलीला के इस अंश में राजा दशरथ के राज्य मंत्री आर्य सुमंत हृदय सम्राट राजकुमार श्रीराम, भ्राता लक्ष्मण और जनक नंदिनी रानी सीता को मुनि वेश में अयोध्या की सीमा से बाहर श्रृंगवेरपुर के वन क्षेत्र में गंगा किनारे छोड़ वापस अयोध्या लौट आए।
इधर अयोध्या में मातम का माहौल व्याप्त था। खाली रथ के साथ आर्य सुमंत के अयोध्या वापस लौटने की सूचना मिलते ही विलाप करते राजा दशरथ पुत्र वियोग के विरह में तड़प उठे। उनसे परम प्रिय पुत्र राम का वियोग सहन न हो सका। तभी उन्हें पुत्र वियोग में मृत्यु की प्राप्ति का वो श्राप स्मरण हुआ जो उनके बाड़ों से अनजाने में मृत श्रवण कुमार के अंधे माता पिता ने उन्हें दिया था। राम राम की करुण पुकार से समूचा राज महल गूंज उठा। तभी श्राप के साक्षात रूप में रघुवंशी राजा दशरथ ने पुत्र वियोग में अपने प्राण त्याग दिए। अंत में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की शयन आरती के बाद लीला मंचन का समापन हुआ। इस दौरान लीला दर्शन को भारी संख्या में उपस्थित क्षेत्रवासी अश्रुपूरित भाव मुग्द हो भक्ति रस का आनंद उठाया।