बहुरे दिन की आस को तरस रहा खंडहर वाला अस्पताल
टूटी लटकती छतें, जर्जर दीवारें और कंकाली शौचालय
बेवफा बिजली और मुंह चिढ़ाते जीर्ण-छीर्ण फर्नीचर
जंगल जैसे हैं झाड़-झंकाड़ और मच्छरों, मक्खियों आदि कीड़ों की भरमार
उजड़ा खड़ंजा और कीचड़ के रास्ते तो पीने का जहर जैसा पानी, घनघोर बदहाली !!!
जहां कुछ वर्षों पहले होती थी अनगिनत डिलीवरियां, आज महज सफेद कागज वाली खाली पुड़िया
स्वास्थ्य महकमे की उदासीनता और बेमाने खोखले दावे, प्राइवेट नर्सिंग होमो की मौज, बड़ा सवाल ???
अस्पताल की सरकारी जमीन पर बेखौफ काबिज हैं अतिक्रमणकारी फिर भी मस्त हैं जिम्मेदार अधिकारी
शाहगंज /जौनपुर
जहां एक ओर सरकारें विकास का पहाड़ा पढ़ते नहीं थक रहीं, जहां भारत देश चीन, जापान और अमेरिका के कंधे से कंधा मिलाने को मचल रहा है, और स्वास्थ्य महकमा बड़े-बड़े आसमानी दावे करता फिर रहा है, वहींं जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयां कर रही है। एक स्थानीय सामुदायिक चिकित्सालय की दुर्दशा और आस पास के कई महंगे प्राईवेट नार्शिंग होम्स की प्रफुल्लता आखिरकार इन बड़े बड़े जनहित के आसमानी दावों को बेमानी और छलावा साबित कर रही है।
सबरहद गांव स्थित खंडहर रुपी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र
मामला तहसील क्षेत्र के सबरहद गांव स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र का है। जो अब किसी खंडहर से कम प्रतीत नहीं होता। जहां डॉक्टर, एनम और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां अपनी जान को जोखिम में डाल ड्यूटी पर तैनात रहती तो हैं लेकिन उपेक्षाओं के अंबार के चलते कोई उपयुक्त चिकित्सा मुहैया कराने में सक्षम नहीं हैं।
घनी आबादी के बीच अपनी बदहाली पर रो रहा सरकारी अस्पताल
लगभग 18000 की घनी आबादी वाले इस बड़े गांव में स्थित सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की हालत इतनी दयनीय है कि जर्जर भवन और बाउंड्री की दीवारों से सीमेंट के प्लास्टर अलग होकर गिर चुके हैं। भवन की बदहाल छत टुकड़ों में लटकने को बेचैन है। बारिश होती है तो टिप टिप बरसा पानी का थीम चरित्रार्थ हो उठता है। कंकाल में तब्दील हो चुका शौचालय, टूटा पड़ा इकलौता सरकारी हैंडपंप, टूटी-फूटी ज़मीन, झाड़-झंकाड़, ठहरा हुआ बदबूदार पानी और उस पर मच्छरों मक्खियों व अन्य कीटों की मेहरबानी से किसी को कभी भी खतरनाक संक्रामक बीमारियां अपने चंगुल में दबोच सकती हैं। अस्पताल में बिजली नहीं है। अस्पताल तक जाने का रास्ता जर्जर हो चुका है, खड़ंजे उखड़ गए हैं। अपनी बदहाली पर रो रहा ये अस्पताल चीख चीख कर अपना दर्द बयां कर रहा है। फिर भी जिम्मेदारों की आंखों पर काला पर्दा हैं, क्यों…..???
संभावित दुर्घटनाओं और संक्रामक बीमारियों के बीच चिकित्सा सेवा को मजबूर है स्वास्थ्यकर्मी और चिकित्सक
ऐसे में खंडहर हो चुके चिकित्सा भवन में संभावित दुर्घटनाओं और खतरनाक जानलेवा संक्रामक बीमारियों के बीच जान जोखिम में डाल एक महिला चिकित्सक और कुछ आशा, एनएम और आंगनबाड़ी कार्यकत्रियां चिकित्सालय में ड्यूटी को मजबूर हैं और उपेक्षाओं के अंबार के चलते क्षेत्र वासियों को यथासंभव थोड़ी बहुत चिकित्सा व्यवस्था जैसे पोलियो आदि टीका, शुगर जांच, ब्लड प्रेशर जांच जैसे छोटी मोटी व्यवस्थाएं मात्र ही मुहैया करा पाती हैं।
कुछ वर्षों पहले होते थे ढेरों प्रसव आदि चिकित्सा
जानकारों की माने तो इस स्वास्थ्य केंद्र पर कुछ वर्षों पहले जब यहां किसी चिकित्सक की तैनाती नहीं थी तब भी यहां प्रसव चिकित्सा की समुचित व्यवस्था थी। क्षेत्र वासी बड़ी संख्या में यहां प्रसव चिकित्सा के लिए आते थे और यहां की व्यवस्थाओं से संतुष्ट रहते थे। भारी तादात में डिलीवरियां होती रहती थी। मगर आज चिकित्सक की तैनाती के बावजूद विभागीय उपेक्षाओं और मौजूदा दुर्व्यवस्थाओं के चलते यह सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र महज सफेद कागज की एक खाली पुड़िया के समान है जो दूर से तो कुछ और होती है, लेकिन खोलने पर फुस्सस्स्स……..
स्ट्रीट लाइट, सीमेंट बेंच,हैंड पंप मरम्मत रिबोर जैसे मामूली जरूरत पर लाखों लाखों का खर्च परकेन्द्र की शौचालय, सफ़ाई और रास्ते की जरूरी दरकार पर अनदेखी क्यूं…???
स्वास्थ्य केंद्र पर तैनात महिला चिकित्सक ने बताया कि चिकित्सालय परिसर में साफ सफाई, पानी आदि व्यवस्थाओं के लिए उन्होंने ग्राम प्रधान सहित सक्षम अधिकारियों से कई बार गुहार लगाई हैं, लेकिन इस चिकित्सालय की दुर्दशा पर किसी का ध्यान केंद्रित नहीं हो रहा है। अब सवाल यह उठता है कि जिस गांव में स्ट्रीट लाइट और सीमेंट के बेंचों ,हैंड पंप मरम्मत रीबोर पर कई कई लाख रुपए का खर्च दिखाया जा रहा है उस गांव में चिकित्सालय की इतनी दुर्गति कैसे? शौचालय खड़ंजे और सफाई की मामूली दरकार को भी जिम्मेदार नजरअंदाज किए बैठे हैं और स्थानीय प्राइवेट नर्सिंग होम तेजी से फल फूल रहे हैं। कहीं स्वास्थ्य केन्द्र की दुर्दशा के पीछे यही मुख्य वजह तो नहीं? बड़ा सवाल…???
सामुदायिक केंद्र की सरकारी जमीन पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा
अस्पताल के नाम पर लगभग 24 विस्वा जमीन जो अब मौके पर महज 5 विस्वा के आस पास ही आंकी जा रही है, बाकी पर बेखौफ अतिक्रमण कायम है। वैसे तो चिकित्सालय की दुर्व्यवस्था को लेकर ग्रामवासी भी कुछ कम जिम्मेदार नहीं हैं। इस बाबत गांव वालों का भी कोई विरोध प्रदर्शन अब तक देखने को नहीं मिला। कहा जाता है कि जन आंदोलनों के आगे तो सरकारें भी घुटने टेक देती हैं तो इन स्थानीय जिम्मेदारों की मनमानी आखिर कब तक टिक पाती। लेकिन गांव में कुछ इतर ही प्रत्यक्ष हो रहा है। हॉस्पिटल के अगल-बगल के वासी ही अस्पताल की जमीन पर अतिक्रमण किए बैठे हैं। अगर पैमाइश कराई जाए तो इस सरकारी जमीन का एक बड़ा हिस्सा अतिक्रमण मुक्त हो सकता है। गाँव के आशुतोष श्रीवास्तव ने जनसुनवाई, ट्विटर, आर टी आई से सूचना माँगी लेकिन सब गोलमाल है। इस मामले में जिम्मेदार विभागीय अधिकारी भी चुप्पी साधे बैठें हैं। बड़ा सवाल …???